नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत में काम करने वाले किसी कर्मचारी का आरोपित से रिश्वत के रूप में पैसे मांगना अस्वीकार्य है। शीर्ष अदालत ने कहा कि न सिर्फ न्यायाधीशों बल्कि न्यायालय में काम करने वाले कर्मचारियों पर भी उच्च मानदंड लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालत में काम करने वाले एक व्यक्ति की सजा को संशोधित करते हुए यह टिप्पणी की।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस व्यक्ति को बर्खास्त करने के बदले सेवा से हटा दिया जाए, ताकि वह किसी अन्य नौकरी की संभावनाएं तलाश सके। बिहार की एक अदालत में काम करने वाले इस व्यक्ति को एक आरोपित से केस में बरी कराने के लिए 50,000 रुपये मांगने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।जस्टिस एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की पीठ को याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस व्यक्ति की 24 साल की सेवा में कोई दाग नहीं है। उसके खिलाफ किसी तरह का यह पहला आरोप है। इस पर पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत में काम कर रहा था और इसने पैसों की मांग की। अपना अपराध उसने खुद स्वीकार किया है।शीर्ष अदालत पटना हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह कर्मचारी पहले औरंगाबाद की अदालत में पीठासीन अधिकारी के दफ्तर में तैनात था। उसे रिश्वत मांगने के आरोप में 2014 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।वहीं सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है। एसोसिएशन ने कोरोना के मद्देनजर अदालतों में मामले दायर करने की समयसीमा में छूट को बहाल करने की मांग की है। सर्वोच्च अदालत ने एसोसिएशन के प्रेसीडेंट शिवाजी जाधव की उन दलीलों पर संज्ञान लिया कि महामारी की बिगड़ती स्थिति की वजह से समयसीमा में छूट की फिर से जरूरत है।
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