सुप्रीम कोर्ट के आज के तीन तलाक के फैसले पर अन्य लोगों से अधिक इंतजार तो जिले की तस्नीम को था। जैसे ही फैसला आया तो तस्नीम की आंखों में आंसू भर गए। उसने ऊपरवाले का शुक्रिया अदा किया।
तलाक के तीन शब्दों ने सिद्धार्थ नगर जिले की तस्नीम की जिंदगी को ऐसे जख्म दिए हैं, जिसे वह न सहला पा रही थी और न ही दूर कर पा रही थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उसे एक उम्मीद जगी है। उसके अबोध बच्चों को अब्बू मिल जाएंगे। उसके दिव्यांग बेटे का इलाज हो सकेगा। तस्नीम ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सराहा है। उसने कहा है कि यह उसके भरोसे की जीत है। इस एतिहासिक फैसले से देश की तमाम मुस्लिम महिलाओं का घर बर्बाद होने से बचेगा।
दो अबोध बच्चों की मां तस्नीम को उनके शौहर मोहम्मद फरीद ने 24 जून 2016 को वाट्सएप पर सउदी अरब से तलाक दिया था। ऐसे में वह बूढ़े पिता के साथ सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय के अब्दुल्ला कालोनी में रहकर इंसाफ के लिए जंग लग रही है। जब उसने न्यायालय का फैसला सुना तो उसकी आंखें भर आईं। उसने न्याय के लिए किस किसका दरवाजा नहीं खटखटाया है। सवा साल से थाना, जनप्रतिनिधियों के घर का चक्कर लगा रही है।
राज्य महिला आयोग में गुहार लगाई। सांसद से मिली है। अभी पिछले सप्ताह सांसद जगदम्बिका पाल की मदद से वह दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी मिलकर आई है। इस आशा में कि किसी तरह से उसकी बिगड़ी तकदीर संवर जाए। ऐसे में न्यायालय का फैसला उसके लिए किसी बड़े सहारे से कम नहीं है।
उसके पिता रिजवानुल हक(70) की भी आंखें डबडबाई हुई हैं। उनका कहना है कि अब बिटिया का घर बस जाएगा। घर पर आने-जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति से तस्नीम पूछ रही है कि अब ससुराल वाले अपना लेंगे न। अब वह घर में घुसने देंगे न, रोकेंगे तो नहीं। उसके बेटे फैज का इलाज तो सकेगा।
फरीद के तलाक देने के बाद से अब ससुराल वाले तस्नीम को अपने घर पर रखने को राजी नहीं हैं। साढ़े तीन वर्ष का बेटा फैज दिव्यांग है। बेटी जोहा एक वर्ष की है। तस्नीम बिटिया को संभालती है। तब तक बेटा रोने लगता है। बेचारा चल नहीं सकता। अपनी व्यथा कहते हुए उसकी आंखें डबडबा जाती हैं। वह कहती है कि आपरेशन के पश्चात ही उसका बेटा पांवों पर खड़ा हो सकेगा। समय पर आपरेशन नहीं हुआ तो वह कभी खड़ा ही नहीं हो सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वह न्यायालय की सराहना तो करती ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी जमकर तारीफ करती है। वह कहती है कि प्रधानमंत्री मोदी तीन तलाक के पक्षधर नहीं हैं। वह कहती है कि किसी भी शादीशुदा महिला के लिए तलाक दु:स्वप्न की भांति है। मुंह से यह शब्द निकलते ही संबंधित मुस्लिम महिला की जिंदगी बर्बाद हो जाती थी। इस पर बहस करना जितना आसान है, बर्दाश्त करना उतना ही कठिन।
पांच वर्ष पूर्व निकाह और एक वर्ष पहले वाट्सएप पर तलाक। हालांकि वह शांत नहीं बैठी। संघर्ष करती रही। ऐसे में न्यायालय का फैसला आया तो उसे लगा कहीं न कहीं उसके भरोसे की जीत हुई।
उसने कहा कि हिन्दुस्तान के उन महिलाओं की जीत हुई है, जिनकी जिंदगी को तलाक के तीन शब्दों ने छिन्न-भिन्न कर दिया।
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