
उन्नति के पथ पर
बढ़ते कदमो को,
पीछे करने की जिद में
तुम अपने ही उद्दत रहते हो।
आश्चर्य, मुझे तुम्हारे कृत्यों पर
द्वेषित दग्ध हृदय में तुम
इर्ष्या की आग जलाते हो,
नही पराये तुम कोई,
खड यंत्रों के जाल बिछाने में
प्रीति निभाने वाले शुभचिंतक,
तुम ही मझधार डुबोने को तैयार।
दावा करते हो हम तेरे है ,
मगर, गिराने को तैयार।
मैं कहता हूँ संदेश तुम्हे ये
खुद की उन्नति को ठुकराकर
तुम खुद पर धोखा करते हो
सत्य कहे तुम सबका भ्रम है,
नही किसी का कुछ कर सकते हो।
नही तुम्हारे बस में सब कुछ,
नियति समय को रचती है।
संदेश कलम का कहना है
बढ़ते कदम नही रुकते है
लाख प्रयत्न करो चाहे ।।
पी एन त्रिपाठी
युवा लेखक/कवि
बाँदा चित्रकूट
पी एन त्रिपाठी......